एमपीपीएससी के द्वारा 2017 में आयोजित की गई परीक्षा की जांच कराए जाने की मांग को लेकर NSUI ने मुख्यमंत्री के नाम कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा...
दमोह - मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा उच्च शिक्षा विभाग के लिये आयोजित सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा 2017 की जांच करने मंगलवार को कलेक्ट्रेट पहुंचकर एक ज्ञापन सौंपा। ज्ञातव्य हो कि यह परीक्षा अपने विज्ञापन से लेकर अब तक विवाद और विसंगतियों के कारण लगातार चर्चा में बनी हुई है पर अब तक इसकी जांच नहीं कि गई। उक्त परीक्षा में आवेदन भरने की अंतिम तिथि निकल जाने के बाद भी लिंक ओपन कर अभ्यर्थियों के दस्तावेज अपलोड करवाये गए थे।
605 ऐसे आवेदकों को परीक्षा देने का मौका दिया गया जिनके सर्टिफिकेट अधूरे और अपूर्ण थे और बाद में इन्हें नियुक्ति भी दे दी गई। इस परीक्षा में 50 से ज्यादा ऐसे अभ्यार्थी भी नौकरी पाने में सफल हो गए जिनकी स्नातकोत्तर उपाधि पर संशय था, यही नहीं कुछ ऐसे आवेदको ने भी भरपूर लाभ उठाया जिनकी पोस्ट ग्रेजुएशन की मार्कशीट में सीजीपीए ग्रेड पॉइंट कम था, पर इन्होंने अतिथि विद्वान बनने के लिये उच्च शिक्षा विभाग के पोर्टल पर ज्यादा प्रतिशत दर्ज किया और इस व्यवस्था का लाभ लेकर अधिभार के 20 अंको के सहारे सहायक प्राध्यापक बन गए जिसकी जांच नहीं कि गई। आश्चर्यजनक बिंदु तो यह है कि 30 से ज्यादा इस परीक्षा में संशोधन किए गए और आनन फानन में साक्षात्कार भी इस परीक्षा से खत्म कर दिया गया।
जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर ही सवाल खड़े हो जाते है। इस संबंध में एनएसयूआई जिलाध्यक्ष शुभम तिवारी का कहना है कि शुरू से लेकर अब तक हुई इस परीक्षा की प्रक्रिया सन्देह को स्पष्ट जन्म दे रही है अगर इसकी जांच सही तरीके से की जाए तो एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश होगा। गौरतलब है कि प्रदेश में इस परीक्षा को व्यापम टू के रूप में ख्याती प्राप्त है गंभीर अनियमितताओं पर शासन प्रशासन द्वारा पर्दा डाला गया है इस परीक्षा के खिलाफ सैकड़ों शिकायती और जांच की ओर इंगित करते आवेदन उच्च शिक्षा विभाग और लोकसेवा आयोग में पेंडिंग हैं इतना ही नहीं न्यायालय में भी अधिकारी कमियां स्वीकार कर चुके हैं। बावजूद इसके सरकार जांच तो करा नहीं रही बल्कि परीक्षा के दो वर्ष बाद भी अनुपूरक सूची उठाकर नियुक्ति करती जा रही है।
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